#H034
चुनौती (Challenge )
एक समय था।
जब न रहने को मकान था ।
न ज्ञान का अभिमान था।
शिकार कर खाना था।
बलपूर्वक कब्जा पाना था।
बल से ही,
किसी को भी अपना बनाना था।
जो हार गया, उसको तो मर जाना था।
ऐसा आदम जमाना था।
कुछ पास न था।
सब कुछ हासिल करना ही,
बढ़ी चुनौती थी।
पर हवा बहुत साफ थी।
हरियाली चारों थी।
जानवरों से खतरा था।
लालच न था।
बस पेट की भूख थी।
समय बदला।
आग पैदा हो गयी,
पहिया भी मिल गया,
घर में रहना सीख गया।
खेती करने लगा।
अनाज उगाने लगा।
पशुओं को पालने लगा।
परिवार बढ़ने लगा।
पर जंगल घटने लगा।
संसाधन कम पड़ने लगे।
संसाधनों के अब लिए लड़ने लगा।
नयी - नयी चुनौतियां गढ़ने लगा।
चुनौतियों को हल करने लगा।
चुनौतियों को बढ़ी करने लगा।
शान के लिए मरने लगा।
लालच के षड्यंत्र करने लगा।
चन्द्रगुप्त ने सामना किया।
सिकन्दर की बढ़ी सैना से,
रण में हराया, सिकन्दर को भगाया
चुनौती लेकर बढ़ी सेना से।
राणा प्रताप लड़ते रहे।
आन वान पर मिटते रहे।
बढ़ - चढ़ चुनौती देते रहे।
अकबर के दांत खट्टे करते रहे।
बढ़ी सेना से लड़ने की चुनौती लेते रहे।
आज भी हमारे दिल में जिन्दा रहे।
सदियों से नयी पीढ़ी में
चुनौती लेने का जज्बा जगाते रहे
लोग विकसित होते गए।
प्रदूषण करते गए।
प्रदूषण कम करने की चुनौती लेते गये।
सुधार किया है, ऐसा कहते गए।
फिर से बढ़े प्रदूषण पर ,
नया बहाना देते गए।
अच्छे आंकड़े बताते गए।
दिन पर दिन धरती का गला दबाते गए।
कुछ करने की चुनौती लेते रहे।
आज भी वैसी ही चुनौतियां,
बहुत हैं, इस संसार में।
बदली हैं, बस चुनौतियां।
लालच बहुत बढ़ गया।
पत्थर से राकेट हाथ आ गया।
सब कुछ बिगड़ गया।
आदमी खुद को धोका देता गया।
धरती पर क्या से क्या कर दिया।
श्वांस के लिए स्वच्छ हवा,
पीने के लिए साफ पानी,
बिगड़ते हुए पानी के स्रोत।
बढ़ती हुई आबादी।
खाने के लिए अनाज की कमी।
धरती पर बढ़ता हुआ कचरा।
ऐसी गम्भीर चुनौती खड़ी करता गया।
मुझे तो लगता है,
आदमी खुद के ही जाल में फंस गया।
देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 23 नवम्बर 2023,©
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