#H017
सोसायटी (Life in Society)
सोसायटी में रहते हैं
हम यहाँ का कुछ हाल दिखाते हैं
रहने वाले खुद क़ो बेहतर समझते हैं
कुत्ता घर में रखते हैं,
पार्क हो या पैदल पथ
कुत्ते की सिट करवा आते हैं
लिफ्ट में कुत्ते पेशाब कर जाते है
कुछ तो लिफ्ट में थूक जाते हैं
साफ रहे सोसायटी
इसकी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं
औरों को कैसा लगता है घूमने पर
समझने की जरूरत नहीं मानते हैं
खुद क़ो बेहतर कहते हैं
कौन पड़ोसी है इनका
जानने की जरूरत नहीं समझते हैं
कौन जिये या कौन मरे
यह अपनी धुन में रहते हैं
शोर शराबे से त्योहार मनाते
एक अलग सी दुनिया में रहते हैं
सब ऐसे ही होते हैं
ऐसा हम नहीं कहते हैं
यह कैसा समाज पनपा
जिसको सोसाइटी कहते हैं
पैकेज्ड फूड्स ही खाते हैं
हर साल मेडिकल चैकअप करवाते हैं
ऋण के बोझ तले जीते हैं
पड़ोसी से मिलने कभी नहीं जाते हैं
एकाकी जीवन जीकर
अवसाद में फंसकर रह जाते हैं
डाक्टरों का मोटा बिल चुकाते हैं
सर्विसेज देने वाले भी
इसका फ़ायदा खूब उठाते हैं
खुद क़ो बेहतर समझते हैं
कैसे बेहतर हैं ये
हम समझ नहीं पाते हैं
हर किस्त चुकाते हैं
फिर भी एक नहीं हो पाते हैं
बिल्डर की मनमानी का
शिकार बहुत हो जाते हैं
इंसा नहीं बन पाते हैं
सोसायटी में अपनी भागीदारी
कभी नहीं निभाते हैं
कमी हर काम में जरूर जताते हैं
खुद को बेहतर कहने की
हिम्मत कैसे कर पाते हैं
सोसायटी में रहने पर
लोग ऐसे कैसे हो जाते हैं
हर चीज खरीद लेंगे पैसे
ऐसा यह समझते हैं
खुशी कहाँ से लाओगे
हम तो बस यह कहते हैं
जो तेरे अन्दर है
वो बाहर कहाँ तुम पाओगे
यह कैसे बाहर आयेगी
जब तक तुम इंसा नहीं बन पाओगे
देवेन्द्र प्रताप
दिनांक 04 नवम्बर 2023,©
अंक 9/10