#H432
ईश्वर पुत्र (Son of God)
सदा से, अंत ही शुरुआत है।
शुरुआत से ही, साथ में अंत है।
"ईश्वर पुत्र" आ गए।
मानवता को प्रेम, क्षमा,
और सच्चाई का संदेश दे गए।
अंधविश्वासों और पाखंड के
विरोध का प्रतीक बन गए।
शक्तिशाली नाराज़ होते गए।
अनेक चमत्कार कर गए।
जैसे बीमारों को ठीक कर दिए,
अंधों को दृष्टि दे गए ।
मृतकों को जीवित कर गए।
लोगों में विश्वास बढ़ाते गए।
यहूदियों और रोमन राजसत्ता की
नज़रों में चढ़ गए ।
"ईश्वर पुत्र" के बढ़ते प्रभाव से
धर्म गुरु और शासक डर गए।
यहूदी धर्मगुरुओं और शासकों को
वो असहज कर गए।
ईश निंदा के आरोपी बताए गए।
राजद्रोह के आरोप लगाए गए।
शिष्य जूडस ने 30 चांदी के सिक्कों के लिए,
उन्हें धोखे से पकड़वाया।
रात के अंधेरे में पकड़ लिए गए।
झूठे आरोपों के मुकदमें दोषी दिखाए गए।
पिलातुस ने जनता के दबाव में
क्रूस पर चढ़ाने का आदेश दिया।
"कांटों का मुकुट" पहनाया गया,
कई कोड़े मारे गए और
अंत में एक भारी "क्रूस" ढोते हुए,
"गोलगोथा" स्थान पर ले जाए गए।
दो अपराधियों के संग क्रूस पर टांगे गये।
वहीं अंतिम सांस ले गए।
अनुयाई मानते हैं कि
"ईश्वर पुत्र" मनुष्यों के पापों के
प्रायश्चित के लिए बलिदान हो गए।
वो मृत्यु से पहले कह गए।
"हे पिता, इन्हें क्षमा कर देना,
क्योंकि ये नहीं जानते
कि ये क्या कर रहे हैं।"
लोगों को जीते जी माफ कर गए।
"गुड फ्राइडे" के तीन दिन बाद,
यीशु ईस्टर रविवार को
पुनर्जीवित हो गए।
पुनरुत्थान के प्रतीक बन गए।
अनुयायियों की विश्वास की नींव है
कि "मृत्यु पर भी विजय संभव है"।
सबको ऐसा संदेश दे गए।
बलिदान का दिन दुखद जरूर है, लेकिन
प्रेम और बलिदान के प्रतीक बन गए,
मानवता को मोक्ष का मार्ग दे गए।
"ईश्वर पुत्र" सबके दिलों में बस गए।
सदा से अंत ही शुरुआत है।
शुरुआत से ही, साथ में अंत है।
कथन सार्थक कर गए।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 20 अप्रैल 2025,©
रेटिंग 10/10
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