Friday, March 7, 2025

#H398 बेवक्त की फोन काॅल (untimely phone call)

#H398
बेवक्त की फोन काॅल (untimely phone call)

जब देर रात में फोन काॅल आए।
दिल इक दम से घबराए।
अनिष्ट की आशंका मन में आए।
प्रियजनों के अहित का भाव आए।
सुबह - सुबह की काॅल भी 
मन में ऐसा ही भाव जगाए।

कभी - कभी पड़ोसी भी
रात में काॅल लगाए।
अनायास ही
कुछ गड़बड़ हो गई क्या।
विचार दिमाग में आए।
सुबह शाम, आते - जाते
पड़ोसियों का हाल लिया जाए।
हालात समझ जल्दी आए।
वरना सवाल रह जाए।
बीमार पड़े हैं हम,
बाहर गए हैं हम,
पता तो कर लिया करो।
तब हालात पता न हो।
तो शर्मिन्दगी महसूस हो जाए।
कैसे हम सामाजिक कहलाए ?

कहीं कोई गुजर तो नहीं गया।
कोई हादसा न तो हो गया।
जब सुबह - सुबह काॅल आती।
ऐसा विचार मन में लाए।
अपनों से शाम को बात की जाए।
सप्ताहांत पर तो जरुर
काॅल लगायी जाए।

सामान्य स्थिति में
शाम 9 के बाद,
सुबह 9 से पहले
हमें काॅल न किया जाए।

आपातकालीन स्थिति में
कभी भी काॅल मिलाओ।
हमें वहीं पर पाओ।
विनती हमारी अन्यथा
बेवक्त काॅल न किया जाए।

देवेंद्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 07 मार्च 2025,©
रेटिंग 8.7/10






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