Friday, October 4, 2024

#H265 मेरी कविता (My Poetry Disclaimer)

#265
मेरी कविता (My Poetry) 

मैंने जो देखा है। 
जो अनुभूत किया है। 
जो लोगों ने अनुभूत किया है। 
और मुझे बतलाया है। 
और मुझे समझाया है
और सिखलाया है। 
वही मैंने लिखा है। 

मेरी कोई चाहत नहीं है। 
कोई सहमत हो इससे
माने या न माने
यह तो सबकी अपनी अपनी
तर्क शक्ति रेखा है। 

सच तो एक छलावा है। 
एक मेरा है, एक तेरा है। 
और एक उसका है। 
एक सच है, 
पर उसको कहाँ किसने देखा है। 

यही इंसान की सीमा है। 
आधे सच में ही तुझे जीना है। 
यही हम सबने सीखा है। 
सच को कहाँ किसी ने देखा है। 
बस मेरी कविता की यह रेखा है। 

देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 02 अक्टूबर 2024,©
रेटिंग 9.7/10

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