Wednesday, August 7, 2024

#H214 गैरत (Pride)

#H214
गैरत (Pride)

कविता में आत्मसम्मान और दौलत में से किऐ चुनाव और परिणाम के बारे में बताया है।

गैरत ने जिन्हें संभाला
दौलत ने उन्हें ठुकराया
इतिहास ने उन्हें अपनाया
कभी चमके या कभी छुपाया
सबने अपनी सहूलियत से
गैर या अपना बताया।

गैरत छोड़ दौलत को
जिन्होंने अपनाया
इतिहास में उन्होंने जीवन  तो पाया
पर सदा के लिए अपना मान घटाया
गद्दार होने का तमगा अपने सिर पाया।

गद्दार का तमगा
फिर कभी न मिट पाया।
आजाद, सुभाष  बन गये।
जिन्होंने कभी न सिर झुकाया।
कोई देश का बंटवारा कराया
और देश भक्त कहलाया।
सबने अपनी सहूलियत से
गद्दार या देशभक्त बताया।
गैरत के बिना आदमी
कभी सम्मान नहीं पाया।


गैरत रखो, पर गुमान न होने दो

इंसान हो महज, खुद को खुदा न बनने दो। 


देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"

दिनांक 05 अगस्त 2024,©

रेटिंग 9.5/10

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