#H216
कुछ नहीं (Not in count)
"कविता में विपन्न लोगों के बारे में बताया गया है। "
सुबह शाम के खाने का पता नहीं
रहने का आशियाना नहीं
कहाँ से चले, कहाँ जाना पता नहीं
अपना भी है कोई जग में पता नहीं।
काम हमें किसी ने दिया नहीं
पढ़े लिखे हम है नहीं
कूड़े करकट से कुछ ढूँढा,
उससे ज्यादा कुछ मिला नहीं
क्या करें पता नहीं।
खाऐं या पहने कुछ सूझता नहीं
रहने का ठिकाना बनता दिखता नहीं
क्या पढ़ पाऐंगे, क्या आगे बढ़ पायेंगे
क्या खुद की पहचान बना पायेंगे
पता नहीं, "नासमझ"
सरकार के लिए हम
एक वोट के सिवाय कुछ नहीं।
कुछ नहीं।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 30 जुलाई 2024,©
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