#H179
अहिंसा का पुजारी
1869 में दो अक्टूबर में जन्मे
और पढ़ने गये विदेश
लेकर बैरिस्टर बनने का उद्देश्य
वकालत करने, मोहन गये विदेश
वहाँ पर मजदूरों की करी वकालत
लड़े मजदूरों के अधिकारों के उद्देश्य
हैं आज भी दक्षिण अफ्रीका में पूजे जाते
हक के लिए लड़ने का दे आए संदेश
स्वाभिमान को लगी ऐसी ठेस
लौट आये अपने देश
सब धर्मों का किया अध्ययन,
और घूमा पूरा अपना देश
और पाया सब का मालिक एक,
फिर कैसा आपस में है द्वेश
दिया उन्होंने हर जन को
सत्य, अहिंसा, स्वच्छता एवं शाकाहार संदेश
देख गरीबी जनता की
मन उनका ऐसा बिचल गया
लाठी ली, पहनी इक धोती और लंगोट
अपनाया सादा ऐसा वेश
इसी वेश में गोलमेज सम्मेलन में
पहुँचे वापू अंग्रेजों के देश
अपने हाथ से सूत कातो और बुनों
अपने और अपनों लिए वेष
अंग्रेजी कपड़े की जलवाई होली
भेजा जनता ने अंग्रेजों को कड़ा संदेश
हर गरीब को आगे बढ़ाना होगा ,
स्वच्छता को अपनाना होगा
बीमारियों से बचना होगा
कुटीर उद्योग को बढ़ाना होगा
दिया हर जन को ऐसा बड़ा संदेश
आजादी वास्ते करे बहुत प्रयास,
गये जेल कई बार,
डांडी यात्रा कर नमक कानून
तोड़ डाला, दिखलाया ऐसा तैश
भारत छोड़ो का नारा देकर
पूरी आजादी का दिया संदेश
गरम नरम दल सबने करे बहुत प्रयास
जाग उठी तब आजाद देश, बनने की आस
और आया पल आजाद देश का
पर चाह न रखी किसी पद की
दिया बढ़ा निस्वार्थ का संदेश
भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में
चल गया एक भ्रमित संदेश
पर बंटवारे पर गोडसे ने ही,
30-जनवरी को ले ली जान उनकी
इससे जन जन में फैला बहुत दुखद संदेश
पूजे जाते हैं पूरे जग में,
अस्थियाँ रखीं जहाँ पर, स्थल है विशेष
वह स्थल राजघाट कहलाता है
जो भी विदेशी राजनायक आते हैं
राजघाट दर्शन कर सत्य - अहिंसा का, ले जाते संदेश
करता हूँ मैं विनय आप से, कुछ कर लो विशेष
पालन इस सपूत की शिक्षाओं का
हम बदलेंगे, तब बदलेगा देश
तब ही होगी सच्ची श्रद्धांजलि राष्ट्रपिता को
यह सबको मेरा संदेश
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
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