#H165
बेटी ही घर की लाज बचाऐगी
"बेटी के प्रेम विवाह करने की जिद और परिवार के मनोस्थिति को दर्शाया गया है"वो ही मेरा महबूब है
हम जियेंगे साथ साथ
मरने को तैयार हैं साथ साथ
ऐसा ही सोचा है मनसूब
हमने साथ साथ
अच्छा है मेरी मोहब्बत में
कायम है भरोसा एक दूजे पर
जियेंगे साथ साथ, मरेंगे साथ साथ
सोच जरा होने वाली घर की रुसवाई पर
सोच जरा रोने वाली अपनी माई पर
जिसने तुझे जन्मा, दर्द सहा, रातें खोई
ताकि सो सके तू रात में
जरा सोच अपनी अलहड़ अंगड़ाई पर
क्या माँ का प्यार प्यार नहीं है
क्या पिता की डांट में दुलार नहीं है
क्या भाई से तकरार में प्यार नहीं है
क्या परिवार की इज्जत से
तेरा कोई सरोकार नहीं है
अगर तू अपने अंतर्जातीय प्यार से विवाह करेगी
तो कैसे वो खुद को समझाऐंगें
कैसे किसी से मिलने जायेंगे
कैसे किसी से नजर मिलाऐंगै
आंखों में देखे थे जो सपने
वो चूर चूर हो जायेंगे
कैसे भूलेगी इनके त्याग को
मात पिता के निस्वार्थ प्यार को
सिसकते माँ बाप के जज्बात को
टूटते हुऐ माँ, बाप, भाई के अरमान को
जरा सोच कैसे चुकाऐगी
बदला इनके जज्बात को
क्या परिवार दुश्मन होता है बच्चों का
कैसे पिछले, अगले प्यार से
निवाह करेगी या पछताऐगी
सदा बेटी घर की लाज होती है
मात पिता के आशीर्वाद से
पिया के घर जाऐगी
वरना बेटी इस घर में भूली जायेगी
इस घर में कलंक कहलायेगी
कैसे अपने बच्चों को
नाना, नानी, मामा की
बात बतायेगी
केवल अपने प्यार को ही तू पायेगी
प्यार नहीं ये अंधापन है
आकर्षण का झंझावत है
आखिर में पछतायेगी
अगर आज भूल गयी इस प्यार को
तू जीवन में सब कुछ पाऐगी
मात पिता के चेहरे पर
मुस्कान ले आयेगी
बेटी घर की लाज होती है
बेटी ही घर की लाज बचायेगी
समाज में सबका सर उंचा रखवायेगी
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
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