#H159
जज्बात
"कविता में भावनाओं में बहक कर नकली प्रेम जाल में फंस जाने की स्थिति को दर्शाया गया है"
हम न समझे थे
ऐसी होगी बात
महंगी पड़ गयी
एक बार,
साथ बिताने की बात
क्यों हुई तुझ से वो मुलाकात।
नौबत ऐसी आ गयी
होने को है मुक्का लात।
फंसकर रह गया मैं
ऐसे हैं अब हालत
अब लानी होगी
तेरे घर बारात
वरना जाना होगा हवालात।
लुट गये सारे मेरे जज्बात
फंसकर रह गया मैं
क्यों की मैंने वो मुलाकात।
"नासमझ" सोच रहा
क्यों करते हो ऐसी बात।
क्या ऐसे हल्के हैं, तेरे जज्बात।
हनीट्रेप में फंस जाते हैं।
प्यार समझकर लुट जाते हैं।
कौड़ी के भाव लग जाते हैं
फिर सस्ते में, वो बिक जाते हैं।
विदेश से ही नहीं,
देश के अन्दर में हनीट्रेप में
फंस रह जाते हैं।
लोग बहुत हैं, जो घात लगाते हैं
अपना उल्लू सीधा करवाते हैं।
आकर्षण से दूर रहो
"नासमझ" यह बतलाते हैं।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 18 अप्रैल 2024,©
रेटिंग 8/10