#H147
प्रणाम
"कविता में प्रणाम करने के पहलुओं के बारे में बताया गया है "
मैं यह खुद से प्रश्न करूँ।
क्यों मैं प्रणाम करूँ।
झुकने का अभ्यास करूँ।
जब लोग सोचते हैं
क्या है मतलब इसका
जो यह मुझे प्रणाम करे।
नमस्कार, दुआ सलाम करे।
क्या कोई झुक जाता है
क्या कोई बिक जाता है
जब कोई किसी को प्रणाम करे
ऐसा करने से
हालचाल मालूम हो जाता है
जब कोई प्रणाम करे।
वरना सब दिल के अन्दर
घुट घुट कर जहरीला होता जाता है
मुहं से हवा निकल जाती है
चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है
चेहरे पर कोई मुस्कुराहट दे जाता है।
दिन अच्छा हो जाता है
दिल हल्का हो जाता है।
जब कोई प्रणाम करे।
अपनापन सा जग जाता है
और किसी का कुछ भी नहीं जाता है।
फिर क्यों यह प्रश्न रहे
मैं क्यों लोगों को प्रणाम करूँ
"नासमझ" अब यहीं रुक जाता है।
ध्यान रहे हर कोई स्वार्थी हो
जग में ऐसा नहीं होता है
जब कोई प्रणाम करे
जब मैं लोगों को प्रणाम करूँ।
देवेन्द्र प्रताप "नासमझ"
दिनांक 28 अप्रैल 2024,©
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