#H149
गुरु की महिमा
प्रथम गुरु हैं माता
सच्चा सखा भ्राता
हर स्थिति में पिता
केवल सही राह दिखलाता
गुरु बिना ज्ञान नहीं है आता
गुरु बिना नयी राह
कोई सोच नहीं है पाता
राम हो या रावण या हो एकलव्य
सबको अपना गुरु है भाता
ईश्वर से मिलने की
गुरु ही राह बताता
कैसे मिले सच्चे झूठे का ज्ञान
यह गुरु ही बतलाता
सब को कोई न कोई गुरु भाता
तब ही जीवन पार लग पाता
गुरु बिन मानव का
उध्दार नहीं हो पाता
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर
मैं गुरु की महिमा दर्शाता
एक बार मैं दिल से
अपने गुरु के लिए
नतमस्तक हो जाता
सदा रहूँगा ऋणी अपने गुरु का
मन में ऐसी सोच बार बार हूँ पाता
देवेन्द्र प्रताप नासमझ "दिनांक 03.07.2023, ©
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